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Mahakaleshwar Jyotirlinga: ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के दर्शन मात्र से टल जाता है अकाल मृत्यु का संकट, स्वयं काल भी है नतमस्तक

Mahakaleshwar Jyotirlinga: जहां एक आह्वान पर टल जाता है अकाल मृत्यु का संकट, जहां मुर्दे की राख से किया जाता रहा शिव का श्रृंगार

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Mahakaleshwar Jyotirlinga: ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ जो कि भारत का तीसरा ज्योतिर्लिंग है. यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी (Shipra River) के पास स्थित है. यहां भगवान शिव को महाकाल (Mahakaal) के रूप में पूजा जाता है. भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से महाकालेश्वर एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) है जो दक्षिण मुखी है और स्वंय प्रकट हुआ है. दक्षिण मुखी होने के कारण इस ज्योर्तिलिंग का दर्शन करना बहुत अच्छा माना जाता है.

तीन भागों में विभाजित है महाकाल मंदिर
उज्जैन महाकाल मंदिर (Ujjain Mahakaal Temple) तीन भागों में विभाजित है. मंदिर के निचले भाग में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है. दूसरे खंड में ओंकारेश्वर (Omkareshwar) और तीसरे व ऊपरी खंड में नागचंद्रेश्वर (Nagchandreshwar) विराजमान हैं. इनमें से नागचंद्रेश्वर का मंदिर साल में सिर्फ एक बार ‘नाग पंचमी’ के दिन ही खुलता है. गर्भग्रह में महाकालेश्वर का दक्षिणा मुखी शिवलिंग है. साथ ही माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमाएं बनी हुई हैं. वहीं गर्भगृह के सामने नंदी की प्रतिमा बनी हुई है. इसे ‘नंदी हॉल’ कहा जाता है.

महाकाल मंदिर की भस्म आरती का है विशेष महत्व
महाकाल मंदिर में सुबह होने वाली भस्म आरती (Bhasm Aarti) का विशेष महत्व होता है. एक समय था जब शमशान से ताजा मुर्दे की राख लाकर उसी राख से इस ज्योतिर्लिंग को भस्म चढ़ाई जाती थी या यू कहें कि शिव जी का श्रृंगार इसी भस्म से किया जाता था. हालांकि मंदिर के पुजारियों का कहना है कि अब ऐसा नहीं है. कई वर्षों से गाय के गोबर की राख को मंत्रोच्चारण से शुद्ध करके उसी भस्म से शिव जी भस्मारती की जाती है.

महाकाल मंदिर से होती है समय की गणना
बता दें, महाकालेश्वर को दक्षिणमुखी होने के कारण काल का स्वामी भी कहा जाता है, क्योंकि दक्षिण दिशा मृत्यु यानी काल की दिशा है. इस मंदिर को काल गणना का केंद्र भी कहा जाता है. देशभर में कोई भी त्योहार सबसे पहले इसी मंदिर में मनाया जाता है. मान्यता है कि महाकाल के सामने काल भी नतमस्तक है. जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन कर लेता है उसकी अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है. महाकाल को उज्जैन का राजा भी कहा जाता है. पुराणों में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जब तक शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं करता, तब तक उनका आध्यात्मिक जीवन पूरा नहीं होता है.

ऐसे हुई महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
महाकाल मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं है. एक कथा के अनुसार, उज्जैन नगरी में कई ब्राह्मण रहते थे, जो वेद-वेदांगों के ज्ञाता थे और शिव भक्त थे. इन ब्राह्मणों को परेशान करने के लिए दूषण नामक राक्षस ने झूठ बोलकर ब्रह्मा जी से वरदान ले लिया और ब्राह्मणों को परेशान करना शुरू कर दिया. राक्षस से परेशान होकर सभी ब्राह्मणों ने भगवान शिव से उस राक्षस से छुटकारा पाने की प्रार्थना की. ब्राह्मणों की प्रार्थना पर भगवान शिव उस राक्षस का वध करने के लिए धरती चीरकर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध कर दिया. इसके बाद भक्तों ने भगवान शिव से यहीं स्थापित होने का आग्रह किया. भक्तों के आग्रह पर शिव जी यहीं विराजमान हो गए.

कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में भी है महाकाल मंदिर का वर्णन
कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में भी महाकाल मंदिर और उज्जैन शहर का वर्णन किया गया है. इसमें कवि मेघदूत से महाकाल मंदिर के दर्शन करने और उज्जैन शहर का भ्रमण करने के लिए कहता है.

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